Aniruddha Bapu Hindi Discourse 12 Jan 2006 - साँस और दिव्यत्व भाग - १

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जो सही है उसे स्वीकार करना और जो गलत है उसे बाहर फेंकना यह क्रिया साँस प्रक्रिया में सहज रूप में होती रहती है और इसीलिए साँस को भी दिव्य माना गया है। मानव का बच्चा जन्म लेते ही रोने लगता है। दर असल वह रोता नहीं है, बल्कि साँस लेता है। मानव की मृत्यु का वर्णन करते हुए भी ‘उसने दम तोड दिया’ ऐसा कहा जाता है। उचित का स्वीकार और अनुचित का निस्सारण करके देह में सन्तुलन बनाये रखनेवाली राधा ही है, इसके बारे में परमपूज्य सद्गुरू श्री अनिरुद्ध बापूनें ने अपने १२ जनवरी २००६ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
(Breathing And Divinity Part - 1 - Aniruddha Bapu Hindi Discourse 12 Jan 2006)


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