Gujarat Election 2017... The First CM of Gujarat Jivraj Mehta के मुख्यमंत्री बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है. Pandit Nehru और Morarji Desai की अलग-अलग चाहतों के बीच Jivraj Mehta बड़े ही दिलचस्प ढंग से CM की कुर्सी तक पहुंच गए. .. देखिए ये पूरी रिपोर्ट
बंबई से काटकर अलग राज्य बने गुजरात की सियासी कहानी बड़ी दिलचस्प रही है … इस नए राज्य के पहले सीएम बने थे जीवराज मेहता … लेकिन सबसे ज्यादा दिलचस्प बात थी, गांधी जी के पर्सनल डॉक्टर साहब डॉ. जीवराज का राज्य के सीएम की कुर्सी पर बैठ जाना … क्योंकि उनके सीएम बनने की कहानी में कई दिलचस्प मोड़ आए ...
एंक लंबे संघर्ष के बाद भाषा के आधार पर गुजरात राज्य का निर्माण हुआ था... राज्य के बनते ही बहस शुरू हुई कि राज्य का सीएम कौन बनेगा … कांग्रेस के भीतर एक साथ कई नामों पर विचार चल रही थी … मोरार जी देसाई गुजरात की सियासत से निकलकर केंद्र तक पहुंच गए थे ... लेकिन राज्य की राजनीति में उनकी दिलचस्पी लगातार बनी हुई थी … मोरारजी देसाई ने बलवंत राय का नाम आगे बढ़ाया था ... बलवंत राय उन तमाम गुणों से परिपूर्ण थे … जो उन्हें राज्य के सीएम की कुर्सी तक पहुंचा दे … कांग्रेस आलाकमान खासकर पंडित नेहरू चाहते थे कि.. मोरार जी देसाई खुद राज्य को संभालें … लेकिन मोरारजी थे कि केंद्र में वित्तमंत्री की कुर्सी से हटकर वापस गुजरात नहीं लौटना चाहते थे … उसी वक्त उन्होंने बलवंत राय का नाम सुझाया … बलवंत राय उस समय लोकसभा सदस्य थे … लेकिन नेहरू इस नाम पर तैयार नहीं हुए …
मोरारजी देसाई ने दूसरा नाम आगे बढ़ाया... खंडू भाई देसाई का, … नेहरू इस नाम पर भी तैयार नहीं हुए … 1957 के चुनाव में खंडू भाई हार चुके थे... ऐसे में नेहरू नहीं चाहते थे कि किसी हारे हुए नेता को राज्य का पहला सीएम बनाया जाए … ऐसे में पंडित नेहरू ने बलवंत राय और खंडू देसाई दोनों के नामों को किनारा कर दिया …
इसके बाद पंडित नेहरू ने खुद से दांव लगाया महात्मा गांधी के पर्सनल डॉक्टर जीवराज मेहता पर...
जीवराज मेहता पेशे से डॉक्टर थे... पार्टी में राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर उनकी छवि काफी सुंदर थी ... महात्मा गांधी के काफी करीबी माने जाते थे... लेकिन मोरार जी देसाई किसी कीमत पर नहीं चाहते थे कि जीवराज मेहता सीएम बनें...
नेहरू की इच्छा के सामने किसी की नहीं चली … जीवराज मेहता गुजरात राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने ... लेकिन आगे दिक्कतें तो और भी थी … मंत्रीमंडल विस्तार के दौरान जीवराज मेहता ने मोरारजी देसाइ के करीबियों को किनारा कर दिया … दोनों की दूरी और दोनों को एक-दूसरे से दिक्कतें और भी बढ़ गई …
गुजरात में 1962 में होने वाले पहले चुनाव से पहले टिकट बंटवारे को लेकर जीवराज और मोरारजी आमने-सामने आ गए … लेकिन नेहरू के प्रभाव के चलते बहुत कुछ जीवराज मेहता के पक्ष में गया … इसके बाद चुनाव हुए तो कांग्रेस को अच्छी जीत मिली … जीवराज मेहता चुनाव जो जीत गए पर आगे मोरार जी देसाई की बिसात को समझना उनके लिए कठिन रहा .. उन्हें डेढ़ साल में इस्तीफा देना पड़ा .. जीवराज मेहता कुल 1238 दिनों तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे … वो कुल तीन बार ऑल इंडिया मेडिकल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे … कहा जाता है कि मुंबई के नानावटी सहित कई अस्पतालों को खड़ा करने में डॉ. जीवराज की अच्छी भूमिका थी... कांग्रेस पार्टी ने अपने एक काबिल और होनहार नेता को साल 1978 के नवंबर महीने की 7 तारीख को हमेशा के लिए खो दिया …