इस वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन से परिस्थिति का सामना करने के लिए क्या कहते है
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१ चौदहवें श्लोक में , सर्वोच्च भगवान अर्जुन को सहनशीलता का पाठ देते है और यह शब्द कहते है;
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।१४।।
२ इस श्लोक का अर्थ है;
हे कुंतीपुत्र! सुख-दुःख को देने वाले विषयों के क्षणिक संयोग तो केवल इन्द्रिय-बोध से उत्पन्न होने वाले सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के समान आने-जाने वाले हैं, इसलिए हे भरतवंशी! तू अविचल भाव से उनको सहन करने का प्रयत्न कर
३ पंधरवें श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते है की कौन उद्धार प्राप्त करने योग्य है;
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।१५।।
४ इस श्लोक का भावार्थ है;
हे पुरुष श्रेष्ठ! जो मनुष्य दुःख तथा सुख में कभी विचलित नहीं होता है, दोनों परिस्थितियों में सम-भाव रखता है, ऎसा धीर-पुरुष निश्चित रुप से मुक्ति के योग्य होता है
५ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा और शरीर के बीच के संबध के बारे में क्या बताते है
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