भगवद गीता - अध्याय २ - पद १४ और १५ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

Artha 2019-02-05

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इस वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन से परिस्थिति का सामना करने के लिए क्या कहते है

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१ चौदहवें श्लोक में , सर्वोच्च भगवान अर्जुन को सहनशीलता का पाठ देते है और यह शब्द कहते है;

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।

आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।१४।।

२ इस श्लोक का अर्थ है;

हे कुंतीपुत्र! सुख-दुःख को देने वाले विषयों के क्षणिक संयोग तो केवल इन्द्रिय-बोध से उत्पन्न होने वाले सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के समान आने-जाने वाले हैं, इसलिए हे भरतवंशी! तू अविचल भाव से उनको सहन करने का प्रयत्न कर

३ पंधरवें श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते है की कौन उद्धार प्राप्त करने योग्य है;

यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।

समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।१५।।

४ इस श्लोक का भावार्थ है;

हे पुरुष श्रेष्ठ! जो मनुष्य दुःख तथा सुख में कभी विचलित नहीं होता है, दोनों परिस्थितियों में सम-भाव रखता है, ऎसा धीर-पुरुष निश्चित रुप से मुक्ति के योग्य होता है

५ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा और शरीर के बीच के संबध के बारे में क्या बताते है

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