रात के डेढ़ बजे होंगे. गंगा किनारे एक लाश पड़ी थी. पानी में फूली हुई. चेहरा और पूरा शरीर नोचा-खसोटा. उसे जलाने के लिए लकड़ियां खींचकर लाने लगा. तभी एक लकड़ी रेत में अटक गई. जितना खींचता, वो उतनी अटकती जाती. अचानक डर लगा. ऊंची-ऊंची लहरें. पानी के साथ हवा का शोर. और एक लाश. लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते हुए आए दिन अजीबोगरीब वाकये होते हैं.