अपनी धर्मध्वजा ऊंची रखने और विधर्मियों से अपने धर्म, धर्मस्थल, धर्मग्रंथ, धर्म संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए किसी जमाने में संतों ने मिलकर एक सेना का गठन किया था। वहीं सेना आज अखाड़ों के रूप में विद्यमान है।
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