#Chhichhore #ChhichhoreMovieReview
कॉलेज लाइफ पर बनी हुई फिल्में अधिकतर सफल रहती हैं क्योंकि यह जीवन का सुनहरा दौर माना जाता है। जो उससे गुजर चुके हैं उन्हें अपने पुराने दिन याद आ जाते हैं और जो गुजर रहे हैं वो अपने वर्तमान को स्क्रीन पर देख खुश होते हैं। इसी कॉलेज और होस्टल लाइफ को फिल्म निर्देशक नितेश तिवारी ने 'छिछोरे' के जरिये परदे पर उतारा है। कहानी में होस्टल लाइफ की मस्ती है, पढ़ाई के क्षेत्र में बच्चों पर दबाव का जिक्र है, स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन है, जिंदगी में दोस्तों का महत्व है और अनिरुद्ध-माया की प्रेम कहानी और तलाक का ट्रैक भी है। लेकिन सभी ट्रैक दमदार नहीं हैं। नितेश तिवारी लेखन के बजाय अपने निर्देशन से प्रभावित करते हैं और कुछ हद तक उन्होंने फिल्म को देखने लायक बनाया है। कुछ दृश्य हंसाते हैं और कुछ इमोशनल करते हैं, लेकिन सिर्फ इतने की अपेक्षा नितेश से नहीं की जा सकती। माना कि उनकी फिल्म मैसेज देती है, लेकिन इसके लिए जो उन्होंने कहानी चुनी उसमें नयापन नहीं झलकता। फिल्म देखते समय थ्री इडियट्स, स्टूडेंट्स ऑफ द ईयर और हिचकी जैसी फिल्में दिमाग में आने लगती हैं। इन फिल्मों में अलग-अलग मुद्दों को दर्शाया गया था और छिछोरे में भी यही सब बातें नजर आती हैं। यदि मनोरंजन की भी बात करें तो फिल्म अच्छे और बोरिंग दृश्यों के बीच हिचकोले खाती रहती है और मनोरंजन का बहाव एक जैसा नहीं है। सुशांत सिंह राजपूत अपने अभिनय से प्रभावित नहीं कर पाए। खासतौर पर उम्रदराज वाले किरदार में उनका अभिनय कच्चा है। श्रद्धा कपूर भी एक जैसा एक्सप्रेशन लिए पूरी फिल्म में नजर आईं। कुल मिलाकर 'छिछोरे' ऐसी फिल्म है जो तभी पसंद आती है जब बहुत कम उम्मीद के साथ देखी जाए।
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