वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, अद्वैत बोधशिविर
२८ मार्च, २०१९
चंडीगढ़
एवमात्मारणौ ध्यानमथने सततं कृते।
उदितावगतिज्वाला सर्वाज्ञानेन्धनं दहेत्।।42।।
~ आत्मबोध, श्लोक ४२
अर्थ: जब आत्मा के निम्न और उच्च पहलुओं का मंथन किया जाता है, तो उससे ज्ञानाग्नि उत्पन्न होती है। जिसकी प्रचंड ज्वालाएँ हमारे भीतर के अज्ञान-ईंधन को जलाकर राख कर देती है।
प्रसंग:
व्यर्थ चीज़ों को जीवन से कैसे हटाएँ?
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आत्मबोध ग्रन्थ को कैसे समझें?
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संगीत: मिलिंद दाते