वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१७ जुलाई, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नोएडा
धर्मराज युधिष्ठिर के द्यूतक्रीड़ा में अपना सम्पूर्ण राज्य सोना,चाँदी, घोड़े रथ तथा अपने चारों भाइयों को हारने के बाद कुछ नही बचा था। उन्होनें अपनी पत्नि को भी दांव पर लगा दिया और उसे राज्य सभा में बुलवाया। युधिष्ठिर के सबकुछ हार जाने के बाद कौरवों की खुशी का ठिकाना न रहा। दुर्योधन के कहने पर दुःशासन द्रौपदी को बाल से पकड़कर घसीटता हुआ सभा-भवन में ले आया दुर्योधन ने कहा कि द्रौपदी अब हमारी दासी है। दुर्योधन के कहने पर दुःशासन द्रौपदी के वस्त्र उतारने लगा। जब दुःशासन द्रौपदी के वस्त्र उतारने लगा तब द्रौपदी को संकट की घड़ी में कृष्ण की याद आई, उसने कृष्ण से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की, तभी सभा में एक चमत्कार हुआ। दुःशासन जैसे-जैसे द्रौपदी का वस्त्र खींचता जाता वैसे-वैसे वस्त्र भी बढ़ता जाता। वस्त्र खींचते-खींचते दुःशासन थककर बैठ गया। श्रीकृष्ण की अनुकम्पा थी, कि द्रौपदी की लाज बच गयी।
प्रसंग:
भरी सभा में क्यों हुआ द्रौपदी का अपमान?
द्रौपदी के पास पाँच पराक्रम पति रहने के बावजूद चीर हरण क्यों हुआ?
द्रौपदी को जुओं में क्यों बेच दिया गया था?
कृष्ण ने द्रौपदी क्यों किये?
कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा कैसे किये?
संगीत: मिलिंद दाते