वीडियो जानकारी:
२५ अप्रैल, २०१९
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
कायरूपसंयमात्तद्ग्राह्यशक्तिस्तम्भे
चक्षुःप्रकाशासंप्रयोगेऽन्तर्धानम् ॥ ३.२१॥
भावार्थ: शरीर के रूप में संयम करने से योगी अंतर्धान हो जाता है।
भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात् ॥ ३.२६॥
भावार्थ: सूर्य में संयम करने से योगी को समस्त लोकों का ज्ञान हो जाता है।
कायाकाशयोः सम्बन्धसंयमाल्लघुतूल-
समापत्तेश्चाकाशगमनम् ॥ ३.४२॥
भावार्थ: किसी भी हल्की वस्तु जैसे कि रुई आदि में संयम करने से आकाश में चलने की शक्ति आ जाती है।
~पतंजलि योग सूत्र, विभूतिपाद,
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संगीत: मिलिंद दाते