समझो नहीं, डूबो || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

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शब्दयोग सत्संग
२१ अप्रैल, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से,
असमाधेरविक्षेपान् न मुमुक्षुर्न चेतरः ।
निश्चित्य कल्पितं पश्यन् ब्रह्मैवास्ते महाशयः ॥२८॥

ज्ञानी महापुरुष समाहित चित्त में आग्रह न होने के कारण मुमुक्षु नहीं, और विक्षेप न होने के कारण विषयी नहीं, मेरे सिवाय जो कुछ दिख रहा है, सब कल्पित ही है, ऐसा निश्चय कर के सबको देखता हुआ, वह वास्तव में ब्रह्म ही है।

प्रसंग:
ब्रह्म क्या है?
ज्ञानी कौन है?
सत्य क्या है?
ज्ञानी महापुरुष चित्त में मुमुक्षु क्यों नहीं होता है?
मुक्ति क्या है?
मुक्ति किसे चाहिए?
निर्वाण माने क्या?

संगीत: मिलिंद दाते

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