तुम्हारे ही केंद्र का नाम है गुरु || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१६ नवम्बर २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

दोहा:
गुरू गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय |
बलिहारी गुरू आपने , गोविन्द दियो मिलाय || (संत कबीर साहब)

प्रसंग:
गुरु माने कौन?
माया क्या है?
क्या गुरु और माया यह एक ही सिक्के के दो अलग - अलग पहलू हैं?
साकार और निराकार गुरु में क्याअंतर होता है?
साकार और निराकार गुरु का क्या महत्व है?
क्या गुरु को सिर्फ़ शरीर मानना सही है?
क्या गुरु देह से आगे भी कुछ है?
गुरु और शिष्य के बीच कैसा रिश्ता होता है?
गुरु कबीर ऐसा क्यों कहते हैं कि 'गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो मिलाय।।'

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