इतना कठिन क्यों है ख़ुद को भूलना? || आचार्य प्रशांत, बाबा बुल्लेशाह पर (2019)

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वीडियो जानकारी:

११ मई, २०१९
अद्वैत बोधस्थल,
ग्रेटर नॉएडा


प्रसंग:

चित्त पिया न जाये असाधों,
उब्भे साह न रहंदे,
असीं मोइआं के परले पार होये,
जीवंदिआं विच बहंदे,
अज कि मलक तगादा सानूं,
होसी बज कहाणा।

अर्थ: हमारी हालत यह है कि हम न तो चित लेट सकते हैं और न पट। ऊर्ध्वमुख श्वास तक नहीं निकलते। हम तो मरे हुओं के भी पार जा चुके हैं और जीवितों के बीच रहने का भ्रम पाले हुए हैं। आज या कल मृत्यु तकाज़ा करने अवश्य आएगी और उस समय बड़ा कहर होगा।

~ बाबा बुल्लेशाह

इतना कठिन क्यों है ख़ुद को भूलना?
साधना में ख़ुद को भुलाना क्यों ज़रूरी है?
हम स्वयं को महत्वपूर्ण क्यों समझते हैं?
क्या हम वास्तव में स्वयं को जानते हैं?
बुल्लेशाह जी को कैसे समझें?

संगीत: मिलिंद दाते

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