वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१४ मई २०१४,
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
एक दिन ऐसा होयगा, कोय काहू का नाही |
घर की नारी को कहै, तन की नारी जाहि || (संत कबीर)
प्रसंग:
मन और शारीर क्या हैं?
मन और शरीर के अस्थायी स्वाभाव को जानना किसलिए ज़रूरी है?
स्वयं की खोज में मन और शरीर किस प्रकार अडचने पैदा करते हैं?