वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२२ दिसंबर, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
प्रसंग:
भोग माने क्या?
“भोगते रहने से आदत बनती है, और दमन से अन्दर विष इकट्ठा होता है।” ऐसा क्यों कहते हैं ओशो?
भोग तृप्ति क्यों नहीं दे पाता है?
दमन करना कहाँ तक उचित है?
संगीत: मिलिंद दाते