फूल - मूल की अभिव्यक्ति || आचार्य प्रशांत,संत कबीर पर (2014)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१० दिसम्बर, २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

दोहा:
जोरू जूठणि जगत की, भले बुरे का बीच।
उत्यम ते अलगे रहै, निकटि रहै तै नीच।। (संत कबीर)

प्रसंग:
क्या कर्म का फल इस जीवन में भुगतना पड़ता है?
जीवन में कर्मफल का कितना महत्व है?
सत्य से रिश्ता कैसे बनाया जाए?
संसार क्या है?
अपने कर्म की गुणवत्ता कैसे पता चले?
कोई भी कर्म निष्काम होकर कैसे करें?

संगीत: मिलिंद दाते

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