वीडियो जानकारी:
हार्दिक उल्लास शिविर
२१ सितंबर, २०१९
अहमदाबाद, गुजरात
प्रसंग:
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥10.9॥
भावार्थ : निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं॥
(भगवद गीता, अध्याय १०, श्लोक ९)
सपने क्यों आते हैं?
सपनों का खेल क्या है?
क्या हर एक को अध्यात्म चाहिए होता है?
संगीत: मिलिंद दाते