सुख-दुख एक समान, तो फिर जिएँ क्यों? || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2019)

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वीडियो जानकारी:
पार से उपहार शिविर, 20.12.19, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।।
~ श्रीमद भगवतगीता, अध्याय २, श्लोक १५

~ सुख-दुःख एक समान, तो फिर जिएँ क्यों?
~ सुख-दुःख में अडिग कैसे रहें?
~ सुख-दुःख से ऊपर कैसे उठें?

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