किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से छोटी बूंदों के माध्यम से वायरस दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है। सामान्य व्यक्ति की नाक, मुंह या आंखों से वायरस उसके शरीर में पहुंच जाता है। यहां से वायरस सीधे नैसल पैसेज (नाक का रास्ता) के पीछे और गले के पीछे की म्यूकस मेम्ब्रेन में पहुंचता है। यहां वायरस खुद को कोशिकाओं से जोड़ लेते हैं। कोरोना के कण नुकीले होते हैं। इनकी सतह से प्रोटीन निकला होता है, जो कोशिकाओं की झिल्ली से चिपक जाता है। वायरस जेनेटिक मटेरियल कोशिका में प्रवेश कर जाता है। कोशिकाएं अब सामान्य तरह से काम नहीं कर पातीं। उसके मेटाबॉलिज्म पर अतिक्रमण हो जाता है। संक्रमित कोशिकाओं की मदद से वायरस की संख्या बढ़ने लगती है। ज्यादा कोशिकाएं संक्रमित होने लगती हैं। शरीर कोरोना फैक्ट्री बन जाता है। यहीं से संक्रमित व्यक्ति का गला खराब होता है और उसे सूखी खांसी शुरू हो जाती है। यह कोरोना से संक्रमित व्यक्ति का सबसे पहला लक्षण हैं। यह कई बार हल्के होते हैं। अब वायरस श्वास नली में प्रवेश करता है। यहां से फेफड़े की चिकनी झिल्ली में सूजन शुरू हो जाती है। इस स्थिति में आते-आते कई बार मरीज को दर्द होने लगता है। उसे अपने लक्षण ज्यादा स्पष्ट पता लगते हैं। फेफड़े की थैली (जिसमें हवा रहती है) नष्ट होने लगती है। इससे फेफड़ों को काम करने में परेशानी शुरू हो जाती है। रक्त में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। रक्त से कार्बन डाई ऑक्साइड निकालने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।सूजन बढ़ने, ऑक्सीजन का प्रवाह कम होने से फेफड़े के हिस्से में द्रव, पस और मृत कोशिकाएं जमा होने लगती हैं। इससे निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है। कई मरीजों में खतरा इतना बढ़ता है कि वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। एक्यूट रेस्पायरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो जाता है। इसमें फेफड़ों में इतना द्रव जमा हो जाता है कि सांस लेना नामुमकिन हो जाता है। मरीज की मौत हो जाती है।