निर्भया गैंगरेप केस के चारों दोषियों को दिल्ली में चुनाव निपटने से पहले फांसी नहीं दी जा सकेगी। फिर फैसला चाहे किसी का भी आ जाए। जी,हां भारतीय कानून की कुछ इस तरह से है कि इन सभी दोषियों के सारे विकल्प खत्म हो जाएं, दया खाचिका खारिज हो जाए तब भी फांसी विकल्प खत्म होने के 14 दिन बाद ही दी जाएगी।
ऐसे में दिल्ली चुनाव खत्म होने से पहले निर्भया गैंगरेप केस के दोषियों को फांसी की सजा नहीं होने जा रही है क्योंकि दिल्ली में चुनाव 8 फरवरी को हैं जब कि चुनाव परिणाम 11 फरवरी को आएगा। ऐसे में अगर तुरंत भी फैसला हो जाए तो यह फांसी 20 फरवरी को दी जा सकेगी।
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अब जब निर्भया केस के चारों दोषियों की फांसी एक बार फिर टाली जा चुकी है। कोर्ट में एक के बाद एक दलीलें चल रही हैं। गैंगरेप दोषी इस बार भी कानूनी से कबडडी खेलकर फांसी टलवाने कामयाब रहे। इस कानूनी दांव-पेंच से फांसी में हो रही देरी के कारण लोग गुस्से में हैं।
आम जन तमाम माध्यमों से गुस्सा जाहिर कर रहे हैं लेकिन ये चारों दोषी आखिर कब तक फांसी के फंदे को ऐसे चकमा देते रहेंगे। आखिर कौन से कानूनी विकल्प बचे हैं जो उनकी फांसी टालने में मददगार साबित हो रहे हैं। आइए हम आपको पूरे विस्तार से समझाते हैं। बाकी आप समझते ही हैं कि भारतीय कानून कहता ही है कि 100 गुनहगार छूट जाएं तो कोई बात नहीं लेकिन किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए।
भारत में किसी भी गुनाह की सजा पाए दोषी को कई विकल्प दिए जाते हैं. ये सुनिश्चित किया जाता है कि वो अपनी हर कोशिश करे. सभी विकल्प खत्म होने के बाद ही दोषी को मौत की सजा दी जाती है. ठीक ऐसा ही निर्भया के मामले में भी हो रहा है. क्योंकि दोषियों की संख्या ज्यादा है और नियम के मुताबिक सभी को एक साथ फांसी देनी होती है, इसलिए वक्त भी लंबा खिंचता जा रहा है. हर दोषी अलग-अलग तरीके से अपने विकल्पों का इस्तेमाल कर रहा है. दोषी मुकेश को छोड़कर अभी तीनों के पास विकल्प बाकी हैं.
निर्भया के दोषियों को पहले 22 जनवरी को फांसी देना तय हुआ था, लेकिन एक दोषी मुकेश की दया याचिका के चलते इसे रद्द करना पड़ा. इसके बाद 1 फरवरी 2019 का डेथ वारंट जारी हुआ. लेकिन ये डेथ वारंट भी दोषियों को फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचा पाया.