वीडियो जानकारी:
पार से उपहार शिविर, 8.11.2019, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 2 श्लोक ५)
हे अर्जुन! वेद तीनों गुणों के कार्य रूप समस्त भोगों एवं उनके साधनों का प्रतिपादन करने वाले हैं,
इसलिए तुम उन भोगों एवं उनके साधनों में आसक्तिहीन, हर्ष-शोकादि द्वंद्वों से रहित,
नित्यवस्तु परमात्मा में स्थित योग क्षेम को न चाहने वाले और आत्म-परायण बनो॥
~ प्रकृति के तीन गुण कौनसे?
~ इन गुणों में सबसे सर्वश्रेष्ठ गुण कौनसा है?
~ श्री कृष्ण इन गुणों को त्याज्य क्यों बताते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते