जयपुर। कहते हैं हर बेटी के हीरो उसके पापा होते हैं, जो उसके हौसलों को उड़ान देते हैं। उसी हौसले की बदोलत वो बेटी अपने सपनों को सचकर दुनिया के सामने एक मिसाल कायम करती है। कारगिल के कई जवानों की हिम्मत की कहानी आपने सुनी होगी, वहीं आज फादर्स डे पर आपको बताते हैं कारगिल युद्ध के दौरान हिम्मत दिखाकर चीता हेलिकॉप्टर उड़ाने वाली एकलौती महिला पायलट गुंजन सक्सेना के बारे में, जिसकी सफलता के पीछे छिपा था उसके पापा का भरोसा, जिसने गुंजन को शौर्य चक्र पाने वाली पहली महिला बना दिया।
वर्ष 1999 यानी वो साल जब कारगिल में युद्ध छिड़ा था। ये वो दौर था जब भारतीय सेना के जवानों ने अपने देश के लिए जान न्योछावर करने से पहले एक बार भी नहीं सोचा। कई जवान जख्मी हुई, कई शहीद हुए और जो बचे उनके बलिदान को भी कम नहीं समझा जा सकता है। वो भी पूरी हिम्मत से लड़े। इन ही में से एक हैं कारगिल युद्ध के दौरान हिम्मत दिखाकर चीता हेलिकॉप्टर उड़ाने वाली एकलौती महिला पायलट गुंजन सक्सेना, जिसे दुनिया आज कारगिल गर्ल के नाम से जानती हैं। गुंजन सक्सेना लखनऊ की रहने वाली थी। गुंजन बड़ी होकर पायलट बनना चाहती थीं, लेकिन उस दौर में लड़कियों का गाड़ी चलाना ही बहुत बड़ी बात होती थी। गुंजप को दुनिया की परवाह नहीं थी, बस अपने पापा पर भरोसा था। जो कहते थे कि प्लेन लड़का उड़ाए या लड़की, उसे पायलट ही कहते हैं। उसके दिल में देश के लिए कुछ करने का जज्बा था। कारगिल युद्ध के दौरान गुंजन सक्सेना ने युद्ध क्षेत्र में बेखौफ होकर चीता हेलीकॉप्टर उड़ाया था। इधर पाकिस्तानी सेना, भारतीय सेनाओं पर रॉकेट बरसा रही थीं, उस वक्त मात्र 25 साल की गुंजन अपने चीता हेलीकॉप्टर के साथ भारतीय जवानों की सुरक्षा में लगी थीं, इस दौरान उन पर भी हमला हुआ लेकिन वो डटी रहीं और अपनी जान पर खेलकर कई जवानों की जान बचाई थीं, इसी वजह से उन्हें कारगिल गर्ल के नाम से नवाजा गया और शौर्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गुंजन सक्सेना भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट रह चुकी हैं, 44 साल की गुंजन फिलहाल अब रिटायर हो चुकी हैं।