जयपुर। कोरोना ने हर तरह से आम लोगों को घेरा है। इसमें बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। राजस्थान के कलाकार भी इससे अछूते नहीं। कला के दम पर कमाकर खाने वाले कलाकार इन दिनों की तुलना अकाल से कर रहे हैं। ठेठ रेगिस्तानी इलाकों से आकर अपनी कला से विश्व फलक पर चमके सितारे भी अब सरकार से सहायता मांगने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि रेगिस्तान में पहले काळ देखा था, अब इस महामारी से जूझना उनके लिए मुश्किल हो चला है।
अवॉर्ड ही काफी नहीं
पद्मश्री गुलाबो सपेरा कहती हैं कि हमारी कला को खूब मान मिला, लेकिन रोजगार को लेकर इतना ही मिला कि हम रोज कुआं खोदते हैं, रोज पानी पीते हैं। राजस्थान की राजधानी में इस कलाकार कॉलोनी में भी किराए से लोग रहते हैं। अब कलाकारों के पास अवॉर्ड हैं, लेकिन किराया देने के लिए पैसा नहीं है। कार्यक्रम ही नहीं हो रहे तो हम क्या कमाएं, क्या खाएं? सरकार ने मान बहुत दे दिया, अब कलाकारों के लिए बजट भी दे। युवा हमारी कमाई देखकर कहते हैं कि इस कला को सीखकर क्या करेंगे, जो मुश्किल समय में पेट ना भर सके। राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को कलाकारों के लिए अलग से बजट जारी करना चाहिए।
महिला कलाकारों की हाइजीन का सवाल
राहत आदि शक्ति फाउंडेशन की फाउंडर रूचि सेठी ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान कलाकार कॉलोनी की महिला कलाकारों के पास सेनेटरी नेपकिन खरीदने तक का पैसा नहीं था। उनकी हाइजीन को देखते हुए हमने और कई संस्थाओं ने सेनेटरी नेपकिन वहां भेजे। कोरोना महामारी से बचाव का एक ही उपाय है, हाइजीन का खयाल रखना। ऐसे में जरूरी है कि सरकार खासकर महिला वर्ग के लिए जरूरी सामान मुहैया करवाए।
राशन भी दो बार ही आया
कलाकार कॉलोनी के कई कलाकार अपने हालत को सामने रखने में झिझक रहे हैं। इनका कहना है कि विधायक कोटे से यहां पर आटा बांटा गया था। लॉकडाउन के दौरान दो बार ही दस—दस किलों एक परिवार को मिला। 20 किलो आटा किसी भी परिवार के लिए कितने दिन चलता है? हर कोई जानता है। कलाकारों को सरकार पैसा नहीं दे सकती, लेकिन घर बैठे कोई वर्चुअल क्लास या कार्यक्रम कर तो हमें काम दे सकती हैं। मिनिमम मानदेय पर हमारी सेवाएं ली जा सकती हैं। इस तरह हमारी मदद भी होगी और कलाकार के साथ कला भी बच पाएगी।