अलवर, 4 जून। घर के दरवाजे पर हल्की सी भी आहट होती है तो आंखों की पुतलियां चौड़ी हो जाती हैं। इस उम्मीद में कि मायाराम आया होगा या कोई उसकी खैर खबर लाया होगा, मगर फिर यहां आलम जगजीत सिंह की गजल 'चिट्ठी न कोई संदेश... जाने वो कौनसा देश...जहां तुम चले गए...' की तरह हो जाता है।