दुर्गा मंत्र - देवी सूक्तं- नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः, Durga Mantra Ya Devi Sarvabhutesu

prince channel 2021-11-06

Views 9

#durgamantra #devisuktam #maadurga
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
यह प्रार्थना लेकर देवता हिमालय पर्वत पर गए और वहां जाकर विष्णुमाया नामक दुर्गा की स्तुति करने लगे।
_______________________________________________________________________________________
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। यह दुर्गा देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के रूप में पालन-पोषण किया और साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। यह दानवों और असुरों तथा पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है।
महिषासुर के बाद शुम्भ और निशुम्भ नामक असुरों ने अपने असुरी बल के घमंड में आकर इंद्र के तीनों लोकों का राज्य और धनकोष छीन लिया। शुम्भ और निशुम्भ नामक राक्षस ही नवग्रहों को बंधक बनाकर इनके अधिकार का उपयोग करने लगे। वायु और अग्नि का कार्य भी वही करने लगे। उन दोनों ने सभी देवताओं को अपमानित कर राज्य भ्रष्ट घोषित कर पराजित तथा अधिकारहीन बनाकर स्वर्ग से निकाल दिया।
उन दोनों महान असुरों से तिरस्कृत देवताओं ने अपराजिता देवी का स्मरण किया कि हे जगदम्बा, आपने हम लोगों को वरदान दिया था कि आपत्ति काल में आपको स्मरण करने पर आप हमारे सभी कष्टों का तत्काल नाश कर देंगी। यह प्रार्थना लेकर देवता हिमालय पर्वत पर गए और वहां जाकर विष्णुमाया नामक दुर्गा की स्तुति करने लगे।
_________________________________________________________________________________________
II या देवी सर्वभुतेषु II
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥१॥
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥२॥
कल्याण्यै प्रणता वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः ।
नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥३॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥४॥
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥५॥
या देवी सर्वभुतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥६॥
या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥७॥
या देवी सर्वभुतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥८॥
या देवी सर्वभुतेषु निद्रारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥९॥
या देवी सर्वभुतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१०॥
या देवी सर्वभुतेषु छायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥११॥
या देवी सर्वभुतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१२॥
या देवी सर्वभुतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१३॥
या देवी सर्वभुतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१४॥
या देवी सर्वभुतेषु जातिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१५॥
या देवी सर्वभुतेषु लज्जारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥१६॥
या देवी सर्वभुतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै

Share This Video


Download

  
Report form
RELATED VIDEOS