बुरहानपुर. मंजिल तो तेरी यहीं थी, इतनी देर लगा दी आते.आते, क्या मिला तुझे जिंदगी से, अपनों ने ही जला दिया जाते.जाते। श्मशान घाट के बाहर यह वाक्य लिखा मिल जाता है। लेकिन अपने शहर में ऐसे दानवीर भी हैं जिन्होंने अपने जीते जी अपना शरीर ही दूसरों के लिए दान कर दिया। यहां तक जीत