रोजा रखने की अवधि विभिन्न देशों में अलग-अलग है। कहीं चंद घंटों का रोजा है तो कहीं दिन व रात का तो कहीं अहले सुबह से शाम का। उलेमा फरमाते हैं कि शुरू में मुहर्रम का दो रोजा वाजिब किया गया था। पैगंबर मोहम्मद को जब अल्लाह ने अपना नबी बनाया तो अल्लाह ने उस वक्त उनके उम्मत पर 50 दिन का रोजा रखने का हुक्म दिया था। पैगंबर मोहम्मद ने उनसे गुजारिश की कि मेरे उम्मत से 50 दिन का फर्ज रोजा हमारी उम्मत नहीं रखा जाएगा। अगर कोई बालिग मर्द व औरत जान बूझकर इस माह का रोजा न रखे तो वह गुनहगार है। उलेमा फरमाते हैं कि अल्लाह तआला ने एलान किया है कि ऐसे लोग जहन्नुम में जाएंगे जो रोजा न रखे। हुक्म तो यहां तक है कि वह शख्स जिसने रोजा नहीं रखा, वह ईद की नमाज रोजेदारों के साथ अदा न करे।
he duration of fasting varies from country to country. Somewhere it is fasting for a few hours, somewhere it is for day and night and somewhere it is from early morning to evening. Ulema say that in the beginning two fasts of Muharram were made Wajib. When Allah made Prophet Muhammad his prophet, then Allah ordered his Ummah to fast for 50 days at that time. Prophet Mohammad requested him that our Ummah will not keep fasting for 50 days from my Ummah. Accepting the request, Allah made fasting for 30 days in Ramadan obligatory on his Ummah. The remaining 20 fasts were made Nafil, which are kept in the six fasts after Eid, in the months of Muharram, Bakrid, Shaban, Rajab etc. There is a reward for observing Nafil fasts. There is no sin in not keeping it. Maulana Anisur Rehman Qasmi, Nazim of Ibadan-e-Sharia, says that 30 fasts of Ramzan have been made obligatory on adult Muslims.
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