(गीता-5) वेदांत के मूल तत्व || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2022)

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वीडियो जानकारी: शास्त्र कौमुदी, 29.04.2022, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।।
जो इस आत्मा को अविनाशी, नित्य, त्रिकाल में परिणाम-शून्य, जन्म-रहित, क्षयशून्य जानता है,
हे पार्थ, वह व्यक्ति किस प्रकार किसका वध कराता है? या किसका वध करता है?
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २१)

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
जिस प्रकार मनुष्य जीर्ण वस्त्र आदि का परित्याग कर दूसरे नए वस्त्र ग्रहण करता है
उसी प्रकार शरीरी जीव जीर्ण शरीर को छोड़कर दूसरे नए शरीर धारण करता है।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २२)

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
शस्त्र इस आत्मा को नहीं काट सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती,
जल गीला नहीं कर सकता, वायु सूखा नहीं सकती।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २३)

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।
यह आत्मा निरवयव होने के कारण काटा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता,
गलाया नहीं जा सकता, सुखाया नहीं जा सकता। यह नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर, निश्चल और सनातन है।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २४)

अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।
यह आत्मा वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता, मन से इसका विचार
नहीं किया जा सकता और यह विकार रहित है। अतः अर्जुन शोक मत करो।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २५)

संगीत: मिलिंद दाते
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