षटतिला एकादशी व्रत कथा | Shattila Ekadashi Vrat Katha | Gyaras Katha | एकादशी व्रत कथा #ekadashi @Mere Krishna
धरती पर एक नगर में ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। एक दिन पति की मृत्यु हो गई, जिससे उसकी पत्नी विधवा हो गई। वह विधवा ब्राह्मणी भगवान विष्णु की भक्ति में अपना समय व्यतीत करती थी। हर मास में एकादशी का व्रत रखती थी।
उस ब्राह्मणी की श्रद्धा और भक्ति को देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए। एक दिन वे साधु का रूप धारण करके एस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने पहुंच गए। उस ब्राह्मणी ने उनको अन्न आदि न देकर मिट्टी का एक पिंड दान कर दिया। कुछ देर बाद भगवान विष्णु उस पिंड के साथ बैकुंठ धाम चले गए।
समय व्यतीत होता गया और एक दिन उस ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई। व्रत से अर्जित पुण्य के कारण ब्राह्मणी को बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त हुआ। वहां पर उसे एक झोपड़ी मिली और वहां एक आम का पेड़ था। उस झोपड़ी में कुछ भी नहीं था। उसने श्रीहरि से पूछा कि पूरे जीवन व्रत और पूजा पाठ करने के बाद उसे बैकुंठ में स्थान तो मिल गया लेकिन उसकी झोपड़ी खाली क्यों है।
इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने अन्न का दान नहीं किया था। पुण्य के प्रताप से मृत्यु बाद बैकुंठ मिला, लेकिन अन्न से वंचित रह गई। ब्राह्मणी ने श्रीहरि से इसका उपाय पूछा। तब उन्होंने कहा कि जब तुम्हारे पास देव कन्याएं आएं तो उनसे षटतिला एकादशी व्रत और उसकी विधि के बारे में पूछना। एक दिन देव कन्याएं आईं तो उस ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी की व्रत विधि विस्तार से बताने को कहा।
जब माघ माह में षटतिला एकादशी का व्रत आया तो उस ब्राह्मणी ने विधि विधान से उपवास रखा, विष्णु पूजा की और रात्रि जागरण की। उस व्रत के पुण्य प्रभाव से उसकी झोपड़ी अन्न और धन से भर गई। इस वजह से षटतिला एकादशी के दिन अन्न का दान जरूर करना चाहिए।
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