शब-ए-बारात पर रोजा रखने की परंपरा मुस्लिम समुदाय शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखते हैं. यह रोजा फर्ज नहीं है बल्कि इस्लाम में नफिल रोजा कहा जाता है. माना जाता है कि शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं. हालांकि, मुसलमानों में कुछ का मत है कि शब-ए-बारात पर एक नहीं बल्कि दो रोजे रखना चाहिए. पहला शब-ए-बारात के दिन और दूसरा अगले दिन. दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद के शाही मौलाना मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने कहा कि शब-ए-बारात इबादत की रात है. इस दिन कब्रिस्तान जाना जरूरी नहीं होता है. इसीलिए सभी अपने घरों में ही रहकर इबादत करें और अपने रिश्तेदारों के अलावा पूरे मुल्क और दुनिया की सलामती के लिए दुआ करें, लेकिन सड़कों पर फालतू घूमने और हुड़दंग करने से बचे. शब-ए-बारात की रात की इस्लाम में काफी अहमियत है जिसका एहतराम करें और इबादत करें
Tradition of fasting on Shab-e-Baraat Muslim community observes fast on the next day of Shab-e-Baraat. This fast is not a duty but is called Nafil Roza in Islam. It is believed that by fasting on the next day of Shab-e-Baraat, all the sins of a person from the previous Shab-e-Baraat to this Shab-e-Baraat are forgiven. However, some Muslims are of the opinion that not one but two fasts should be observed on Shab-e-Baraat. The first on the day of Shab-e-Baraat and the second on the next day. Shahi Maulana Mufti Mukarram Ahmed of Fatehpuri Mosque of Delhi said that Shab-e-Baraat is a night of worship. It is not necessary to go to the cemetery on this day. That's why everyone should stay in their homes and pray and pray for the safety of their relatives as well as the entire country and the world, but avoid roaming unnecessarily on the streets and creating ruckus. The night of Shab-e-Baraat has great importance in Islam, which should be respected and worshiped.
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