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वीडियो जानकारी: 22.02.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
जहाँ तक दुनिया की बात है, यहाँ सच और शक्ति का साथ चलना बहुत ज़रूरी होता है। और इस दुनिया में, और सत्य के यूटोपिया के जो आदर्श हैं उसमें अंतर यही होता है कि उस यूटोपिया में, उस आदर्श लोक में, सत्य और शक्ति हमेशा एक साथ रहते हैं।
आप शक्ति कहाँ दे आये हो? किसको बाँट आये हो? किसको सौंपा आये हो? सच अगर यहाँ है, तो शक्ति कहाँ है? न जन बल, न धन बल, न संख्या बल, समाज का ही पैसा है वो आपने उसको लाकर दे दिया और सच का हम काम कर रहे हैं तो 500 रूपए के लिए भी आप से सौ बार गुहार लगानी पड़ती है देख लो आप शक्ति किसको दे रहे हो!
~ व्यापक सत्ता होने के बावजूद झूठ को एक कमज़ोर लौ की तरह, कुचल देने की ज़रूरत क्यों होती है?
~ अगर एक छोटे से को हराने के लिए, बहुत बड़े को जोर लगाना पड़े तो बताओ बलवान कौन है, छोटा कि बड़ा? छोटा।
~ शक्ति शिव के पास नहीं थी तो शक्ति ने क्या करा था आत्मदाह?
~ भ्रष्ट आदमी क्रोधित बाद में होता है, डरता पहले है
~ सच बहुत कड़वा क्यों होता है?
~ सच झेला नहीं जाता?
~ हम इतने मजबूर और निर्भर क्यों हैं?
~ अगर कोई कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर परेशान करे?
~ क्या ये दुनिया सिर्फ़ ताकतवरों के लिए है?
~ क्या हम सचमुच इतने कमज़ोर होते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते