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वीडियो जानकारी: 06.03.24, कठ उपनिषद्, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
प्रथम फंसे सब देवता, बिलसै स्वर्ग निवास ।
मोह मगन सुख पाइया, मृत्युलोक की आस ।।
~ संत कबीर
सत् का (अनश्वर का) समागम (सत्पुरुषों का सत्संग) ही स्वर्ग है।
असत् (नश्वर) संसार के विषयों में रचे-पचे लोगों का संसर्ग ही नरक है।
~ निरालंब उपनिषद् - 18
स त्वमग्निं स्वर्ग्यमध्येषि मृत्यो प्रब्रूहि त्वं श्रद्दधानाय महह्यम् ।
स्वर्गलोका अमृतत्वं भजन्त एतद्वितीयेन वृणे वरेण ॥
~ कठ उपनिषद् - 1.1.13
लोकादिमग्निं तमुवाच तस्मै या इष्टका यावतीर्वा यथा वा।
स चापि तत्प्रत्यवदद्यथोक्तंअथास्य मृत्युः पुनरेवाह तुष्टः ॥
~ कठ उपनिषद - 1.1.15
तमब्रवीत्प्रीयमाणो महात्मा वरं तवेहाद्य ददामि भूयः।
तवैव नाम्ना भवितायमग्निः सृङ्कां चेमामनेकरूपां गृहाण ॥
~ कठ उपनिषद - 1.1.16
त्रिणाचिकेतस्त्रिभिरेत्य सन्धिं त्रिकर्मकृत्तरति जन्ममृत्यू ।
ब्रह्मजजं देवमीड्यं विदित्वा निचाय्येमाँ शान्तिमत्यन्तमेति ॥
~ कठ उपनिषद - 11.17
त्रिणाचिकेतस्त्रयमेतद्विदित्वा य एवं विद्वाँश्चिनुते नाचिकेतम् ।
स मृत्युपाशान्पुरतः प्रणोद्य शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके ॥
~ कठ उपनिषद 1.1.18
राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे।
~ संत कबीर
संगीत: मिलिंद दाते
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