न मैं न मेरा || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2024)

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वीडियो जानकारी:

प्रसंग:
~ क्यों हम कहीं भी पूरे नहीं हो पाते?
~ आंतरिक श्रम क्या है? और ये श्रम पुराने आदमी के शारीरिक श्रम से कहीं ज्यादा दुखदाई क्यों है?
~ हम बिना बाजू हिलाए भी क्यों बुरी तरह थके हुए रहते हैं?
~ आधुनिक आदमी की त्रासदी क्या है?
~ सच्चा जीवन कौन सा है?
~ कौन हजारों मील की यात्रा कर सकता है?
~ परीक्षण कैसे होना चाहिए?

प्रार्थना : बाहर आराम की ज़िन्दगी न मिले

यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बंधनं तदा।
मत्वेति हेल्या किञ्चिन्मा गृहाण विमुञ्च मा ॥
~ अष्टावक्र गीता - 8.4

अनुवाद: जब तक पुरुष में अहंकार बैठा है- "मैं ब्राह्मण हूँ," "मैं ज्ञानी हूँ," "मैं त्यागी हूँ,"
तब तक वह मुक्त कदापि नहीं हो सकता है।

विवेक बुद्धि द्वारा सारे कर्म तथा कर्मफल मुझ में अर्पित करके निष्काम, ममता-रहित और शोक-शून्य होकर तुम युद्ध करो। भगवद गीता - 3.30

तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके ।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥
ईशोपनिषद - 5


संगीत: मिलिंद दाते
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