सवाईमाधोपुर. जिला प्रशासन की ओर से भले ही सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को मुख्यालय पर रहने के आदेश दिए जाते हो मगर इन दिनों सरकारी दफ्तरों के अधिकारी-कर्मचारी प्रशासनिक अधिकारियों की धज्जियां उड़ाते नजर आ रहे है।
जिला मुख्यालय पर संचालित सरकारी दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारियों के आने-जाने का कोई समय निर्धारित नहीं है। हालात यह है कि पूरे सप्ताह में सरकारी अधिकारी-कर्मचारी केवल चार दिन काम कर रहे है। शेष तीन दिन केवल आराम फरमा रहे है। इसकी एक बानगी शुक्रवार को जिला ुमुख्यालय पर कई कार्यालयों में देखने को मिली। जहां अधिकारी व कर्मचारी अपनी कुर्सियों से गायब मिले। वहीं फरियादी व आमजन इधर-उधर ही भटकते रहे।
उठा रहे मोटी तनख्वाह, कुर्सी रहती है सूनी
सरकारी कार्यालयों में अधिकारी-कर्मचारी प्रतिमाह लाखों रुपए की तनख्वाह उठा रहे है, जबकि दफ्तरों में कुर्सियां सूनी पड़ी रहती है। रसद विभाग, नगरपरिषद व अन्य दफ्तरों में परिवादी अपनी समस्याओं के निस्तारण के लिए पहुंचते है लेकिन कार्यालयों में कोई नहीं मिलने से निराश वापस लौट रहे है।
ये कार्यालय दिनभर पड़े रहे सूने
जिला मुख्यालय पर जिला कलक्ट्रेट परिसर में रसद विभाग का कार्यालय संचालित है। यहां शुक्रवार को दोपहर रसद विभाग अधिकारी, प्रवर्तन अधिकारी की कुर्सियां खाली पड़ी थी। वहीं नगरपरिषद में भी विधि अधिकारी से लेकर कनिष्ठ अभियंता व सहायक अभियंता भी कुर्सी नदारद मिले। इस दौरान आयुक्त से पूछा तो उन्होंने बताया कि शनिवार व रविवार के चलते अधिकारी कर्मचारियों से छुट््टी ले रखी है। ऐसे ही हालात अन्य कार्यालय में नजर आए। जहां अधिकारी-कर्मचारी नदारद मिले।
टेबल पर पैर रखकर बैठा मिला कार्मिक
कलक्ट्रेट परिसर में रसद विभाग कार्यालय में खाद्य आपूर्ति कक्ष में एक कार्मिक टेबल पर पैर रखकर बैठा मिला। इस दौरान वह मोबाइल चलाता नजर आ रहा था। यहां कर्मचारी को रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था।
दो दिन पहले ही मार जाते है बंक
जिला मुख्यालय पर संचालित सरकारी कार्यालयों में अधिकतर अधिकारी-कर्मचारी अप-डाउन करते है। ऐसे में उनके कार्यालय समय पर आने व जाने का कोई समय निर्धारित नहीं रहता है। कर्मचारी प्रतिदिन अपनी मनमर्जी से कार्यालय पहुंच रहे है। यहां तक कि शनिवार व रविवार को अवकाश के बावजूद अधिकतर अधिकारी व कर्मचारी शुक्रवार को भी कार्यालय से बंक मार लेते है। वहीं सोमवार को भी देरी से कार्यालय पहुंचते है। इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है।