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वीडियो जानकारी: 04.01.2020, विश्रांति शिविर, पुणे, महाराष्ट्र, भारत
प्रसंग:
जीवितं मरणं चोभे सुखदु:खै तदैव च।
लभालाभे प्रियद्वेष्ये य: सम: स च मुच्यते।।
~ (श्लोक ४, उत्तर गीता अध्याय ४)
भावार्थ: जो जीवन-मरण, सुख दुःख, लाभ-हानि तथा प्रिय-अप्रिय आदि द्वंदों को समभाव से देखता है, वह मुक्त हो जाता है।
~ क्या ऐसा संभव है की ऐसा व्यक्ति जो सबकुछ समभाव से देखता है वो अधर्म में कार्यरत हो जाये?
~ समभाव का क्या अर्थ है?
~ आत्मस्थ कैसे रहें?
~ द्वन्द्वों में समभाव रखने से मुक्ति कैसे मिलती है?
~ मुक्त पुरुष के क्या लक्षण हैं?
~ समभाव रखना धर्म है या अधर्म?
संगीत: मिलिंद दाते
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