वीडियो जानकारी: 05.05.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
~ क्या जात बदल देना चाहिए?
~ जातिवाद का मूल कारण क्या? समाधान क्या?
~ जातिप्रथा क्यों बनाई गयी है?
~ जातिप्रथा का विस्तार क्या है?
~ जाति व्यवस्था को संक्षिप्त में कैसे समझे?
~ जात-पात में भेद भाव दूर कैसे हो?
~ ऊँची जाति के कौन हैं? नीचे जाति के कौन हैं?
~ ब्राह्मण कौन है?
~ वर्ण व्यवस्था कैसा होना चाहिए?
~ उपनिषद, गीता का ज्ञान ज़रूरी क्यों है?
~ सवर्णों ने जातियां बनाई और अब वे जाति-विरोधी आंदोलनों के नेता भी बनना चाहते हैं!
~ क्यों दलितों और सवर्णों के बीच टकराव बढ़ने की आशंका है?
गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥
भगवद् गीता - 4.23
बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ।।
- संत कबीर
ब्राह्मण किसे माना जाए?
जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त न हो; जाति, गुण और क्रिया से भी युक्त न हो; काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित, आशा, मोह आदि भावों से रहित; दंभ, अहंकार आदि दोषों से मुक्त; वही ब्राह्मण है।
ऐसा श्रुति, स्मृति-पुराण और इतिहास का अभिप्राय है। यही उपनिषद् का मत है।
- श्लोक 9, वज्रसूचिका उपनिषद् (सार)
साँच कहूं तो मारिहैं, झूठे जग पतियाइ।
यह जग काली कूकरी, जो छेड़े तो खाय ॥
- संत कबीर
जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ॥
- संत कबीर
कबीरा कुआँ एक है, पानी भरे अनेक ।
बर्तन में ही भेद है, पानी सबमें एक ॥
- संत कबीर
एक बूँद, एक मल मुतर, एक चाम, एक गुदा।
एक जोती से सब उतपना, कौन बामन कौन शूद ॥
- संत कबीर
संगीत: मिलिंद दाते
~~~~~