आत्मा न शरीर छोड़ती है, न शरीर में प्रवेश करती है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2024)

Views 2

🧔🏻‍♂️ आचार्य प्रशांत से समझे गीता और वेदांत का गहरा अर्थ, लाइव ऑनलाइन सत्रों से जुड़ें:
https://acharyaprashant.org/hi/enquir...

📚 आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?
फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...

➖➖➖➖➖➖

#acharyaprashant #aatma

वीडियो जानकारी: 11.09.24, वेदांत संहिता, गोवा

प्रसंग:
नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्चयी ।
कैवल्यमिव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम् ॥ ६ ॥
~ अष्टावक्र गीता

भावार्थ:
मैं यह शरीर नहीं हूँ और न ही यह शरीर मेरा है, मैं बोधस्वरूप हूँ, जो ऐसा जान रहा होता है, वह कैवल्य (मुक्ति) को प्राप्त होता है। वह फिर इस बात को याद नहीं रखता कि उसने क्या किया और क्या नहीं किया ॥

~ हमें कोई पसंद या नापसंद क्यों आता है?
~ क्या प्रेम हम करते हैं?
~ हमारा प्रेम क्यों झूठ हैं?
~ अहम झूठ क्यों है?
~ हम मशीन क्यों हैं?
~ जीवन में बदलाव कैसे लाएँ?
~ मरने से डर क्यों लगता है?
~ विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण क्यों होता है?
~ मेरी आत्मा कहना ये सबसे बड़ा भ्रम क्यों है?
~ चेतन कौन है?
~ जड़ कौन है?

संगीत: मिलिंद दाते
~~~~~

Share This Video


Download

  
Report form
RELATED VIDEOS