ये सब जो ज़िंदगी में भरा हुआ है, ज़रूरी है क्या? (व्यर्थ को पहचानें और हटाएँ) ||आचार्य प्रशांत(2023)

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वीडियो जानकारी: 31.12.23, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा

ये सब जो ज़िंदगी में भरा हुआ है, ज़रूरी है क्या? (व्यर्थ को पहचानें और हटाएँ) ||आचार्य प्रशांत(2023)

📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
1:14 - मनुष्य होने की पहचान
11:56 - हमने धर्म को बाहरी बना दिया है
21:01 - वेदांत विशेष क्यों?
30:45 - फालतू चीजों को हम अपने पास क्यों रखते हैं?
39:55 - झुन्नूलाल के पीछे दुनिया क्यों पड़ती है?
46:01 - नेति-नेति का खेल
51:23 - अहम का कर्म
55:49 - कबीर साहब के दोहे और भजन
1:00:06 - समापन

विवरण:
आचार्य जी ने इस वीडियो में बताया है कि हमें अपने भीतर की कमी को समझना और उसे दूर करना चाहिए, न कि बाहरी चीजों को जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए। आत्मज्ञान ही असली धर्म है, और हमें अपने भीतर की सच्चाई को पहचानना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अपने अहंकार को बढ़ाता है, जबकि असली समाधान अपने भीतर की अनावश्यकता को घटाने में है। हमें यह समझना चाहिए कि जो हमें चाहिए, वह पहले से हमारे पास है, और हमें इसे पहचानने के लिए अपने भीतर की ओर देखना होगा।

प्रसंग:
कबीर भजन

रैन दिवस पिय संग रहत हैं
रैन दिवस पिय संग रहत हैं,
मैं पापिन नहिं जाना ॥

मात पिता घर जन्म बीतिया,
आया गवन नगिचाना।
आजै मिलो पिया अपने से,
करिहो कौन बहाना ॥ १ ॥

मानुष जनम तो बिरथा खोये,
राम नाम नहिं जाना।
हे सखि मेरो तन मन काँपै,
सोई शब्द सुनि काना ॥ २ ॥

रोम-रोम जाके परकाशा,
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
करो स्थिर मन ध्याना ॥ ३ ॥

~ कबीर साहब

शब्दार्थ: रैन दिवस- रात दिन; गवन- संसार से जाने की दशा; नगिचाना: निकट आना; विरथा- व्यर्थ


संगीत: मिलिंद दाते
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