भारतीय विमानन उद्योग के 2030 तक 26.08 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. हालांकि ये GPS स्पूफिंग जैसी बाधाओं से भी जूझ रहा है जिससे परिचालन में दिक्कत आ सकती है. बीमा क्षेत्र इस महत्वपूर्ण सेक्टर को लगातार जोखिमों से बचाने के लिए मजबूत साइबर कवरेज के लिए तुरंत अलर्ट जारी कर रहा है.
विमानन उद्योग में GPS स्पूफिंग का मतलब ऐसी स्थिति से है जब नकली GPS सिग्नल भेजकर किसी विमान के नेविगेशन सिस्टम की लोकेशन को गलत बताया जाता है.
हाल ही में दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरू जैसे कई प्रमुख हवाई अड्डों पर इसका असर देखने को मिला. सिर्फ पिछले महीने ही लगभग 400 उड़ानों पर असर पड़ा, जिससे देरी, मार्ग परिवर्तन और बैकअप सिस्टम पर निर्भरता बढ़ गई.
यह एक ऐसे विमानन उद्योग के लिए बहुत बड़ा दांव है, जिसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू बाजार होने का तमगा हासिल है. इसने वित्त वर्ष 2026 के पहले चार महीनों में नौ करोड़, 65 लाख से ज्यादा यात्रियों को संभाला. ये जीडीपी में 53.6 अरब डॉलर से ज्यादा का योगदान देता है और 77 लाख नौकरियां मुहैया कराता है.
20 अगस्त को पेश की गई एक संसदीय रिपोर्ट में एयर ट्रैफिक कंट्रोलर की लगातार कमी को बताया गया, जिससे ऐसे संकट के दौरान इंसानी गलती का खतरा बढ़ जाता है.
बीमा कंपनियां अब केवल डेटा उल्लंघनों से आगे बढ़कर व्यापक साइबर नीतियों के लिए दबाव डाल रही हैं जो पारंपरिक डेटा-ब्रीच कवरेज से आगे जाती हैं.
जैसे-जैसे विमानन उद्योग से जुड़े लोग कर्मचारियों के प्रशिक्षण और लचीली तकनीक में निवेश कर रहे हैं, बीमाकर्ता उन्हें GPS स्पूफिंग के संभावित आर्थिक नुकसान के बारे में भी आगाह कर रहे हैं.