मैं ये तो नहीं जानती हूं कि आखिर मेरी भीतर इतनी ताकत आती कहां से है. मगर हां बस ये जानती हूं कि अगर ठोकर नहीं लगती तो शायद मैं ये काम कभी नहीं कर पाती. दरअसल ये बात साल 2008 की है. मैं पति के साथ बेटी को लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में दिखाकर लौट रही थी. हमारा ऑटो खोड़ा के रास्ते पर था. उसी वक्त सामने से आ रही एक तेज रफ्तार कार ने टक्कर मार दी. उसके बाद क्या हुआ ये बता पाना मुश्किल है, क्योंकि हम तीनों ही अलग-अलग हॉस्पटिल में एडिमट हो चुके थे.