हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इसे वट अमावस्या व बर अमावस्या भी कहा जाता है। ये व्रत सुहाग का पर्व है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करके महिलाएं अपने पति की दीर्घायु व सुखद जीवन की कामना करती हैं। कुछ महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे पूजा व व्रत कथा आदि करती हैं व कुछ घर में बरगद की डाल पूजा के स्थान पर रखकर विधि विधान के साथ पूरा पूजन करती हैं। इस बार वट अमावस्या आज यानी 22 मई को पड़ी है। आइए इस मौके पर ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानते हैं वट अमावस्या के दिन बरगद के वृक्ष की पूजा का धार्मिक महत्व।
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ये है मान्यता
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक जब यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण हर लिए तो सावित्री ने उनके मृत शरीर को बरगद के पेड़ के नीचे लेटाया और यमराज के पीछे पीछे चल दीं। जब यमराज ने उन्हें लौटने के लिए कहा तो सावित्री ने उनसे पति धर्म और मर्यादा को निभाने की बात कही और लगातार पीछे चलती रहीं। सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले कि आज मुझसे पति के प्राणों के अतिरिक्त तुम कुछ भी मांग सकती हो। इस पर सावित्री ने उनसे तीन वचन मांगे। पहले वरदान में सास−श्वसुर की आंखों की ज्योति, दूसरे वर में उन्होंने अपने ससुर का छिना हुआ राज्य मांगा और तीसरे वर में सौ पुत्रों की मां बनने की प्रार्थना की। इस पर यमराज ने तथास्तु बोला और आगे बढ़ गए। तब सावित्री ने कहा कि आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है, पर पति के बिना मैं मां किस प्रकार बन सकती हूं। सावित्री की बात सुनकर यमराज रुक गए और उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ। इसके बाद उन्होंने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची। इसके बाद वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा। तब से वट अमावस्या के दिन बरगद के पेड़ की पूजा और सात बार परिक्रमा का चलन प्रारंभ हो गया।
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सूत लपेटने का कारण जानें
वट अमावस्या के दिन पूजन के दौरान वट वृक्ष पर सात बार सूत लपेटते हुए परिक्रमा करते हैं। सात बार सूत के साथ परिक्रमा का आशय है कि पति से हमारा संबंध सात जन्मों तक बना रहे। इसके अलावा वृक्ष की परिक्रमा लगाने से हमें उसकी सकारात्मकता मिलती है।
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वैज्ञानिक कारण भी समझें
वट वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर होता है। साथ ही इसकी आयु बहुत अधिक होती है। लंबे समय तक रहकर ये आमजन को छाया व अन्य लाभ देता है। ऐसे में इस वृक्ष का पूजन कर इन पेड़ों को भगवान समान बताकर न काटने का संदेश दिया जाता है।
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