भारत के सभी हिस्सों में दुर्गा पूजा का उत्सव शुरू हो चुका है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का शुभारंभ होता है. शारदीय नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि के बीच संधि पूजा की जाती है. नवरात्रि के दौरान संधि पूजा का विशेष महत्व होता है. संधि पूजा अष्टमी के खत्म होने और नवमी के लगने के बाद के काल तक की जाती है. इस दिन पारंपरिक वस्त्रों में और पारंपरिक विधि से देवी की पूजा का विधान होता है.
संधि पूजा को अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट बाद तक किया जाता है. इसके पीछे की एक कथा के मुताबिक, जिस समय मां चामुण्डा और महिषासुर के बीच में भयंकर युद्ध हो रहा था. उस समय चण्ड और मुंड नाम के दो राक्षसों ने माता चामुण्डा की पीठ पर वार कर दिया था, इसके बाद माता का मुख क्रोध के कारण नीला पड़ गया और माता ने दोनों राक्षस का वध कर दिया था. जिस समय उनका वध संधि काल में हुआ. यह मुहूर्त काफी शक्तिशाली माना जाता है. क्योंकि मां दुर्गा ने इस समय अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग कर चण्ड और मुंड का वध कर दिया था.
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