सबसे पहले एक स्पष्टीकरण. टिप्पणी का यह अंक वयस्कों के लिए है. बच्चे और आहत भावना समुदाय से जुड़े लोग कृपया इससे दूर रहे. मनुष्य का भाषा से जितना पुराना संबंध है उतना ही पुराना संबध उसका अपशब्दों से भी है इसलिए भावनाओं को ताखे पर रखकर इस टिप्पणी का आनंद लें.
जो लोग भाषा में गंदगी, अश्लीलता आदि खोजते हैं उनके लिए काशीनाथ सिंह ने लिखा है परम चूतिया. जिस तरह ब्रिटेन की महारानी के साथ हर मैजेस्टी, भारत के राष्ट्रपति के साथ महामहिम, और #SupremeCourt, हाईकोर्ट के जजों के साथ माईलॉर्ड जैसी सम्मानसूचक शब्द जुड़े हैं उसी तरह भाषा में अनायास पवित्रता ढूंढ़ने वालों को काशीनाथ सिंह ने परम चूतिया की उपाधि दी है. बीते हफ्ते कुछ ऐसा हुआ जिस पर बाकी लोगों के साथ पत्रकारिता बिरादरी के बीच भी हू, हा, ये क्या बोल दिया #YogiAdityanath ने टाइप उछलकूद होती रही.
#AmitShah जिस कॉन्फिडेंस से पत्रकारों को हड़काते हैं, उसके बाद पत्रकार जरूरी सवाल पूछना ही भूल जाते हैं. शाह कहते हैं कि जयश्रीराम धार्मिक और राजनीतिक नारा नहीं है. दरअसल जय सियाराम से जै रामजीकी और वहां से जयश्रीराम की यात्रा में धर्म की भयानक विद्रूप राजनीति छिपी है. जय सियाराम और जै रामजीकी अभिवादन की वह शैली है जिसमें शिष्टता, सौम्यता और संयम निहित है. जयश्रीराम एक खास राजनीतिक आंदोलन की उत्पत्ति है. 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के बाद इस नारे ने गति पकड़ी. जाहिर है इस नारे की जड़ में राजनीतिक स्वार्थ और एक तबके विशेष से नफरत के बीज छिपे हैं. हिंसा और आक्रामकता इसके अंतरनिहित तत्व हैं. जब अमित शाह कहते हैं कि यह अपीजमेंट यानि तुष्टिकरण के खिलाफ लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति है तब वो यह बात छुपा जाते हैं कि अपीजमेंट क्या सिर्फ मुसलमानों का ही होता है, खुद वो जो राजनीति पूरे देश में कर रहे हैं उससे किसका अपीजमेंट हो रहा है. यह आरएसएस की शिक्षा है कि देश में सिर्फ मुसलमानों का ही अपीजमेंट हो सकता है. यह इसलिए है क्योंकि उनकी संख्या इतनी है जो नतीजों को प्रभावित कर सकती है. वरना इस देश में सिख, इसाई, पारसी भी अल्पसंख्यक हैं उनके खिलाफ अपीजमेंट की शिकायत कभी नहीं होती.
ऐसे ही कुछ और मुद्दों के इर्द-गिर्द इस हफ्ते की टिप्पणी रही. देखिए, अपनी राय दीजिए और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब कीजिए.
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