भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर सरकार का खतरा, डोनाल्ड ट्रम्प और मीडिया के बीच टकराव, इसकी भारतीय संदर्भ में विवेचना, कर्नाटक में लोकसभा की तीन और विधानसभा की दो सीटों पर हुआ उपचुनाव, इसमें जेडी(एस) और कांग्रेस गठबंधन की जीत, पं. नेहरू के आवास तीनमूर्ति भवन की नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम और लाइब्रेरी की गवर्निंग बॉडी में 4 नए सदस्यों की नियुक्ति आदि इस हफ्ते की चर्चा के मुख्य विषय रहे.
इस बार चर्चा में बतौर मेहमान शामिल हुए पत्रकार नीरज ठाकुर, जो मूलरूप से आर्थिक मामलों के पत्रकार हैं. इनके अलावा स्तम्भ लेखक आनंद वर्धन और न्यूज़लॉन्ड्री के विशेष संवाददाता अमित भारद्वाज भी चर्चा में शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने पूछा, “आरबीआई एक्ट का सेक्शन 7 यानी जिस रेयर लॉ की बात हो रही है, वह सरकार को किस तरह के अधिकार देता है?”
इसका जवाब देते हुए नीरज ठाकुर ने कहा, “सरकार के पास पैसे की कमी पड़ गयी है, और वह जल्द से जल्द कुछ कुछ निर्णय लेना चाह रही है. जिसे आरबीआई मना कर रहा है. आरबीआई हमेशा से अपनी स्वायत्तता को बचाए रखना चाहता है, जबकि सरकारें हमेशा से चाहती रही हैं कि वह उनके हिसाब चले. इसके अंदर सेक्शन 7 सरकार को किसी भी तरह का निर्देश जारी करने का अधिकार सरकार को देता है, जिसे आरबीआई को मानना ही पड़ेगा.”
नीरज ने इस संकट के उत्पन्न होने की वजहें और भारतीय अर्थव्यवस्था में पैदा हुए उठापटक के सूत्र नोटबंदी से जोड़े. जिसको लेकर सरकार ने समय-समय पर बड़े-बड़े दावे किए थे. लेकिन आज की तारीख में यह बात साबित हो गई कि नोटबंदी असफल रही.
अतुल ने नोटबंदी के सवाल को आगे बढ़ाते हुए आर्थिक विशेषज्ञ प्रियरंजन दास का हवाला दिया जिन्होंने कहा है कि सरकार का आकलन था कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में करीब साढ़े तीन से चार लाख करोड़ रुपए का काला धन वापस नहीं लौटेगा. लिहाजा सरकार यह शेष रकम रिजर्व बैंक से लेगी. लेकिन नोटबंदी में सारा पैसा वापस आ गया. अब सरकार वही साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए रिजर्व बैंक से उसके रिजर्व से वसूलना चाहती है.
आनंद वर्धन ने इसका जवाब देते हुए कहा, “अब जबकि सत्ता का केन्द्रीकरण बहुत अधिक है, और इसमें संवादहीनता और पारदर्शिता क?