कबीर साहब की उलटबासियों को कैसे समझें? || आचार्य प्रशांत (2024)

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वीडियो जानकारी: 24.5.24 , अनौपचारिक सत्र , ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ उलटबाँसी का क्या अर्थ होता है?
~ प्रकृति पर चलना जीवन का बंधन क्यों है?
~ सौ ज्ञानियों पर कौन भारी पड़ता है?
~ तिल समान तो गाय है में कबीर साहब गाय किसको कह रहे हैं?
~ जीवन में दुख कैसे हटाएं?

एक अचम्भा हमने देखा, कुएँ में लग गई आग।
कीचड़ कादो सबही जरिगा, मछली खेले फाग॥
~ संत कबीर

एक अचम्मा हमने देखा, गदहा के दो सींग।
उसके गले में रस्सा बाँधा, खैचत अर्जुन भीम ॥
~ संत कबीर

तिल समान तो गाय है, बछड़ा नौ-नौ हाथ।
मटकी भरि-भरि दुहि लिया, पूँछ अठारह हाथ।
~ संत कबीर

साँझ पड़ी दिन ढल गया, बाघिन घेरी गाय।
गाय बिचारी न मरी, बाघिन न भूखी जाय।।
~ संत कबीर

एक अजूबा हमने देखा, मुर्दा रोटी खाये।
समझाने से समझत नाही, लात पड़े चिल्लाय ॥
~ संत कबीर

संगीत: मिलिंद दाते

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