लॉक डाउन के कारण लाखों की तादाद में अलग-अलग राज्यों में फंसे प्रवासी श्रमिकों की मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई है. लॉक डाउन के शुरुआती दिनों में अपने गृह राज्य की ओर पैदल ही कूच कर गए कई मजदूरों की मौत की खबर सामने आने के बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की ओर से मजदूरों को वापस भेजने के लिए विशेष रेल सेवाएं और बस सेवा शुरू की गई मगर बहुत से लोग जो पहले ही अपने राज्य की और पैदल रवाना हो गए ,उनके सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा है. दूसरी समस्या यह भी आ रही है कि मजदूरों की तादाद बहुत ज्यादा होने के कारण ट्रेनों की संख्या कम पड़ रही है. लोगों को अभी भी अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है. ऐसे में मजदूर अपने अपने हिसाब से साइकिल टैक्सी या ट्रकों पर लद कर अपने गंतव्य की ओर रवाना हो रहे हैं. बहुत सारे लोगों के पास जमा पूंजी बिल्कुल खत्म हो चुकी है और रास्ते में मुश्किलें सामने आने पर वे उनका मुकाबला किस तरह कर पाएंगे यह एक बड़ा सवाल है .अपने नियोक्ताओं द्वारा ठहरने और खाने पीने का इंतजाम न करने और सरकारी स्तर पर भी लापरवाही होने की वजह से मजदूर वर्ग निराश और आक्रोशित है. इस तरह के कई वीडियो सामने आ रहे हैं ,जिनमें मजदूर अब अपने गांव में रहकर ही खेती-बाड़ी करके जीवन यापन करने की बात कह रहे हैं .ऐसे में देखना यह है कि स्थितियां सामान्य होने पर इनमें से कितने लोग वापस अपने काम पर लौटते हैं .देखिए इस ज्वलंत मुद्दे पर कार्टूनिस्ट सुधाकर सोनी का नजरिया