मंदसौरः आज हम आपको एक ऐसे वृक्ष के बारे में बताने जा रहे हैं जो है कल्पवृक्ष यानि देवलोक का एक वृक्ष। इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी था। यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी। हिंदुओं का विश्वास है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी याचना की जाए, वही यह दे देता है। इसका नाश कल्पांत तक नहीं होता। हम बात कर रहे हैं मंदसौर जिले के गरोठ तहसील के अंतर्गत कोटड़ा बुजुर्ग गांव मे एक 500 साल पुराना 2 जोड़ी से खड़ा कल्प वृक्ष का पेड़ है जिसे गांव के लोग शिवपार्वती का रूप मानते है, श्रावण का पहला सोमवार होने सें यहाँ पर कल्पवृक्ष का दर्शन करने के लिए काफ़ी संख्या मे दर्शानार्थी आ रहे है हर साल श्रावण मास के प्रथम सोमवार यहाँ पर मेला लगता था पर इस बार कोरोना के चलते मेला नहीं लगा है, कल्प वृक्ष की पुराणों मे काफ़ी मान्यता है, बताया जाता है कि यहां पर जो भी भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसके हर मन्नत पूरी होती हैं हर साल इस 500 साल पुरानी कल्पवृक्ष के हजारों लोग दर्शन करने पहुंचते हैं व अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए यहां पर मन्नत मांगते हैं उन सभी की मन्नत पूरी होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह एक परोपकारी मेडिस्नल-प्लांट है अर्थात दवा देने वाला वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन 'सी' होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं। इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है।