गीता के अनुसार कौन सा कर्म करने योग्य है? || आचार्य प्रशांत (2024)

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वीडियो जानकारी: 15.02.24 , गीता समागम , ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ अपने कर्मों को समझने से क्या होगा?
~ कर्ता को कैसे पहचानें?
~ क्या गीता का यह संदेश है कि अपना कर्म करते रहो?
~ असली पापी कौन है?
~ गीता के अनुसार कौन सा कर्म करने योग्य है?
~ अपने कर्मों पर ध्यान कैसे दें?


नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण: ।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मण: ।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 8

कर्म के परित्याग से
श्रेष्ठ है नियत कर्म
कर्मयात्रा पर चल पड़े
जिस क्षण लिया जीव जन्म

~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ

अर्थ:
तुम नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही श्रेष्ठ है। फिर कर्म न करने से तुम्हारी शरीर रक्षा भी तो नहीं होगी।


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावह।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 35

आत्मा अपनी प्रकृति पराई
ध्यान दें और जान लें
आत्मा से प्रेम ही धर्म है
प्रेम भले ही प्राण ले

~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ

अर्थ:
नियमबद्ध व विधिपूर्वक किए गए परधर्म की अपेक्षा गुणरहित (प्रकृतिरहित) निजधर्म श्रेष्ठ है।
अपने धर्म के पालन में मृत्यु भी कल्याणकारी है, पराया धर्म भयानक है।


संगीत: मिलिंद दाते
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