वो रो रही है। वो 16 दिसंबर 2012 से रो रही है। आंसू अब तक सूखे नहीं हैं। कभी मजबूत होकर न्याय के लिए दौड़ती, तो कभी हताश सी बिखरी नजर आती। लेकिन बेटी की जिंदगी का दर्दनाक अंत, उसे फिर खुद को समेटने के लिए मजबूर करता। वो पूरी व्यवस्था से लड़ी, लगातार लड़ी। आंसू पौंछते हुए सवाल करती है। हम बात कर रहे हैं निर्भया की मां की। सात साल में उसे आपने कई बार रोते देखा होगा। लेकिन उतने ही जुनून के साथ उसने अपनी बेटी के लिए न्याय की जंग लड़ी है। आज इतना रो रही है कि आंसू थम नहीं रहे। इन 7 सालों में 7 जनवरी 2020 को उसे खुश होते देखा गया था, जब निर्भया के चारों दोषियों का डेथ वारंट जारी कर, 22 जनवरी को फांसी की सजा का एलान कर दिया गया। भीतर की खुशी थी उसके चेहरे पर। लेकिन न्याय की खुशी कुछ देर ही रही। न्याय की पेचिदगियों का फायदा उठाकर निर्भया के दोषियों ने इस सजा को लम्बी करने का रास्ता निकाल लिया है। तब निर्भया की मां का सब्र का बांध टूट गया है। उन्होंने बहते आंसुओं के बीच कहा है कि जिन लोगों ने मेरी बेटी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया, आज वो कानून के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।